मैं तुम्हे हर पल याद करती हूँ
हर सांस के साथ क्या?
इक इक सांस मैं
कई कई बार याद करती हूँ
चलते वक़्त पायल के
घुन्गरुओं की झंकार
मैं आहट तुम्हारी सुनाई देती हैं
फूलों की पत्तियों मैं
सूरत तुम्हारी लगती हैं
बारिश की बूंदों मैं
अक्स जैसे तुम्हारा छलकता हैं
बादलों मैं छिपा जैसे
मेरा घनशयाम लगता हैं
अग्नि की लपटों मैं
जैसे मेरा मोहन सजता हैं
मंद मंद वायु मैं
जैसे तेरी मुस्कराहट सी आती हैं
वो वंशी की मधुर मधुर धुन
कानो मैं आती हैं
पृथ्वी के हर जर्रे मैं
छिपे जैसे बनवारी हैं
मेरी हर धड़कन
कई कई बार
नाम कान्हा तेरा पुकारती हैं
अब तो आ जाओ आ जाओ ना Ek Anjan sathi
Saturday, April 18, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
प्रिय बन्धु
ReplyDeleteखुशामदीद
स्वागतम
हमारी बिरादरी में शामिल होने पर बधाई
मेरी सबसे बड़ी चिंता ये है कि आज हमारे समाज का शैक्षिक पतन उरूज पर है पढना तो जैसे लोग भूल चुके हैं और जब तक आप पढेंगे नहीं, आप अच्छा लिख भी नहीं पाएंगे अतः सिर्फ एक निवेदन --अगर आप एक घंटा ब्लॉग पर लिखाई करिए तो दो घंटे ब्लागों की पढाई भी करिए .शुभकामनाये
अंधियारा गहन जरूरत है
घर-घर में दीप जलाने की
जय हिंद
याद करती हूँ
ReplyDeleteहर सांस के साथ क्या?
इक इक सांस मैं
कई कई बार याद करती हूँ
चलते वक़्त पायल के
घुन्गरुओं की झंकार
मैं आहट तुम्हारी सुनाई देती हैं
फूलों की पत्तियों मैं
सूरत तुम्हारी लगती हैं
बारिश की बूंदों मैं
अक्स जैसे तुम्हारा छलकता हैं
बादलों मैं छिपा जैसे